मंगलवार, 26 जून 2012

अलफ़ाज़

आसमान में बादल रहने लगे हैं
हम फिर हवाओं में बहने लगे हैं

हर बरसात में इक उम्मीद जगती है
तर होंगे दरो आँगन कहने लगे हैं


शजर पे धूप सोना पहन कर आयी है
ये फूल हैं उसपे या गहने लगे हैं


मैं लौट आऊँ हकीकत में मगर
ये ख्वाब मुझमें अब बहने लगे हैं

पहले तो न हुआ करती थी ऐसी बातें
सोच में अल्फाज़ कब से रहने लगे हैं

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