सोमवार, 18 अप्रैल 2011

दुश्मन

किसने रखा था ये ख्वाब
मेरी हथेलियों पर !

वो ख्वाब जो दिन रात
मुझसे उलझता था
सनाट्टे में शोर करता था
भीड़ में मुझसे लड़ता था!

वो खवाब
जो खींचता था मेरे क़दमों को|
और मेरी बेड़ियों पर हँसता था|

ये ख्वाब किसने रखा था?
उस शख्स को बुलाओ!


दोस्त नहीं दुश्मन है ये ख्वाब !

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

बता ज़िन्दगी तेरा सरूर कहाँ है?

बता ज़िन्दगी तेरा सरूर कहाँ है |
था मैं जिस पे मगरूर कहाँ है ||

कहाँ है फलसफा कहाँ वो अंदाज़
रहता था आँखों में वो नूर कहाँ है |

ज़ेहन को नाज़ था जिन ख्वाबों पर
तासीर क्या हुई वो गरूर कहाँ है |

हाथ से जो छूटा हाथ दोस्तों का
कौन देखे कौन कितनी दूर कहाँ है |

शाम से सुबह , सुबह से शाम
सफ़र क्यों जाना बदस्तूर कहाँ है |