शनिवार, 18 दिसंबर 2010

जंग

दुनिया से लड़ फितरत से लड़
खातिर सच की हर आफत से लड़|

बुन बुन के जाल आती है बार बार
ठुकरा, झूठ की हर दावत से लड़|

खुदी रोके तो खुदी को मार डाल
गर खौफ दे तो शराफत से लड़ |

करवट लेती उमंग बाँध दे
कदम रोकती इज़ाज़त से लड़ |

उठ संभल के लड़ना ही ज़िन्दगी है
तू लड़ और पूरी ताकत से लड़|

करीब १३ वर्ष पहले लिखी गयी

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

ख्वाब सा

रंग ओ खुशबू सा गुलाब सा
हर दिन नहीं होता अब खवाब सा |

एक अंगार कब से सुलगता है
छू लो की जल उठे अफताब सा |

जब जी चाहे आकर पढ़ लेना
हाल रहेगा मेरा खुली किताब सा |

वो क्या शै है उस झूठ में आखिर
मेरा सच खड़ा है लाजवाब सा |

तेरे साथ चला तो घुट जाऊंगा ज़िन्दगी
तेरा सफ़र नहीं है मेरे हिसाब सा|

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

वक़्त साथ देता

किसी सोयी हुई पलक को गुलाब होता
वक़्त साथ देता मैं आफ़ताब होता !

बहाना करके आइये

बहाना करके आईये या बेसबब आइये
हम यहीं हैं कभी इस जानिब आइये !

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

स्मृति चिन्ह

मधुरस जब छलकता था
जब मधुमास बुलाता था,
कहाँ रहे जब ये उपवन
हरा भरा लहराता था|

कहाँ थे जब हर डाली
झुकी थी यौवन भार से,
हर आहट को सुन थे उठते
आतुर ह्रदय में ज्वार से|

पंथ जोहते थे नयन मेरे
सजा कर वेदी प्रणय की,
कहाँ थे तब तुम बोलो
ऋतु थी जब प्रलय की |

अब सर्वस्व मुरझाया जब
पड़ा यहाँ है चरण तुम्हारा,
कहाँ से लाऊँ जीवन बोलो
बढ़ करे जो वलय तुम्हारा|

न प्रिये ! नहीं चाहिए
करुण तुम्हारा ये उपकार,
क्या करूंगी करूणा लेकर
पाया ही न जब अधिकार |

ये कविता लगभग १३ वर्ष पहले कॉलेज पत्रिका के लिए लिखी गयी थी

कितना समय बीत गया

करीब दो वर्ष हो चलें हैं मुझे पिछली पोस्ट लिखे हुए। आप सबकी टिप्पणियाँ पढ़ कर अच्छा लगा। लगातार लिखने की और सब तक पहुँचने की कोशिश करूंगा।

जल्द मिलेंगे।

ख्याल रखियेगा.