शनिवार, 21 जुलाई 2012

शहर बढ़ता जाता है जिंदगी छोटी हुई जाती है
उनसे मिलने की उम्मीद अब छूटती जाती है

शनिवार, 30 जून 2012

गर्मी

आ गया है आन बान से रथ पे सवार सूरज
बेहाल हम कभी अब्र तलाशते हैं कभी आब

मंगलवार, 26 जून 2012

अब्र

अब के अब्र से क्या बरसेगा !

कौन भीगेगा कौन तरसेगा !

गुफ्तगू

कभी मिलें ज़रा गुफ्तगू तो हो
ये दिल उनसे रु ब रु तो हो

सफ़र कितना भी हो तै हो जाएगा
कोई रास्ता मगर तेरी सू तो हो

शौक भी तू है जंजीर भी तू
सबब कुछ भी हो साथ तू तो हो


जबां कुर्बान ये जहां कुर्बान
लफ़्ज़ों में बयां तू हू ब हू तो हो


ऐसे कैसे इस मौसम को रंग कह दूं
रंगत न सही लेकिन खुश्बू तो हो

अलफ़ाज़

आसमान में बादल रहने लगे हैं
हम फिर हवाओं में बहने लगे हैं

हर बरसात में इक उम्मीद जगती है
तर होंगे दरो आँगन कहने लगे हैं


शजर पे धूप सोना पहन कर आयी है
ये फूल हैं उसपे या गहने लगे हैं


मैं लौट आऊँ हकीकत में मगर
ये ख्वाब मुझमें अब बहने लगे हैं

पहले तो न हुआ करती थी ऐसी बातें
सोच में अल्फाज़ कब से रहने लगे हैं

सोमवार, 25 जून 2012

ज़ेहन से परे

कुछ है तो सही ज़ेहन से परे
हम भी सुन सुन कर ये कहने लगे हैं

साथ

शौक भी तू है जंजीर भी तू
मेरा कुछ भी बने साथ तू तो हो