रंग ओ खुशबू सा गुलाब सा
हर दिन नहीं होता अब खवाब सा |
एक अंगार कब से सुलगता है
छू लो की जल उठे अफताब सा |
जब जी चाहे आकर पढ़ लेना
हाल रहेगा मेरा खुली किताब सा |
वो क्या शै है उस झूठ में आखिर
मेरा सच खड़ा है लाजवाब सा |
तेरे साथ चला तो घुट जाऊंगा ज़िन्दगी
तेरा सफ़र नहीं है मेरे हिसाब सा|
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