गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

ख्वाब सा

रंग ओ खुशबू सा गुलाब सा
हर दिन नहीं होता अब खवाब सा |

एक अंगार कब से सुलगता है
छू लो की जल उठे अफताब सा |

जब जी चाहे आकर पढ़ लेना
हाल रहेगा मेरा खुली किताब सा |

वो क्या शै है उस झूठ में आखिर
मेरा सच खड़ा है लाजवाब सा |

तेरे साथ चला तो घुट जाऊंगा ज़िन्दगी
तेरा सफ़र नहीं है मेरे हिसाब सा|

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