-- हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाजगत में विकास तभी आयगा जब हम एक परिवार के रूप में कार्य करें. अत: कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर अन्य चिट्ठाकारों को जरूर प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
एक अनुरोध -- कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन का झंझट हटा दें. इससे आप जितना सोचते हैं उतना फायदा नहीं होता है, बल्कि समर्पित पाठकों/टिप्पणीकारों को अनावश्यक परेशानी होती है. हिन्दी के वरिष्ठ चिट्ठाकारों में कोई भी वर्ड वेरिफिकेशन का प्रयोग नहीं करता है, जो इस बात का सूचक है कि यह एक जरूरी बात नहीं है.
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दिन भर वह आदमी चलता रहता है रेत पर | झुलसते पैरों से चलता रहता है गर्म रेत पर| और शाम होते गिर जाता है उसी गर्म रेत पर | सुंदर विचार स्वागत है हिन्दी ब्लॉग जगत में निरंतरता बनाए रखें मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
5 टिप्पणियां:
सजीव एवं मार्मिक वर्णन!!
-- शास्त्री
-- हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाजगत में विकास तभी आयगा जब हम एक परिवार के रूप में कार्य करें. अत: कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर अन्य चिट्ठाकारों को जरूर प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
एक अनुरोध -- कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन का झंझट हटा दें. इससे आप जितना सोचते हैं उतना फायदा नहीं होता है, बल्कि समर्पित पाठकों/टिप्पणीकारों को अनावश्यक परेशानी होती है. हिन्दी के वरिष्ठ चिट्ठाकारों में कोई भी वर्ड वेरिफिकेशन का प्रयोग नहीं करता है, जो इस बात का सूचक है कि यह एक जरूरी बात नहीं है.
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बस हो गया काम !!
दिन भर वह आदमी
चलता रहता है
रेत पर |
झुलसते पैरों से
चलता रहता है गर्म रेत पर|
और
शाम होते गिर जाता है
उसी गर्म रेत पर |
सुंदर विचार स्वागत है हिन्दी ब्लॉग जगत में निरंतरता बनाए रखें मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
उन रातों
जिनमें चाँद आना भूल जाता है
रेत में बदल जाता है
वह आदमी|
वाह!
लिखते रहें
अच्छी कविता है। लगता है परेशानी को बहुत नजदीक से देखा है आपने।
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