शनिवार, 20 सितंबर 2008

गर्म रेत

दिन भर वह आदमी
चलता रहता है
रेत पर |
झुलसते पैरों से
चलता रहता है गर्म रेत पर|
और
शाम होते गिर जाता है
उसी गर्म रेत पर |

रात को चाँद देखता है
और सोचता है
काश! वह बिछौना होता!
और उन रातों
जिनमें चाँद आना भूल जाता है
रेत में बदल जाता है
वह आदमी|

बुधवार, 23 जुलाई 2008

नमस्कार

हिन्दी में मैं बहुत समय से लिखता रहा हूँ किंतु इन्टरनेट की सीमायें होने के कारण बंधा रहा | अन्य वस्तुओं के इलावा हिन्दी में ब्लॉग्गिंग विकल्प के लिए गूगल को धन्यवाद|

अक्सर मिलेंगे|